नई दिल्ली। कोरोना वाइरस के संक्रमण के चलते देश में 24 मार्च को लॉकडाउन घोषित किया गया। इस दौरान सरकार द्वारा प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों को बंद के दौरान कम्पनी द्वारा पूरी सैलेरी देने का आदेश जारी किया गया। साथ ही कम्पनी द्वारा कर्मचारियो को पूरी सैलेरी नही देने पर उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही की बात कही गई। अब सुप्रीम कोर्ट ने इसके विरुद्ध दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को आदेश दिया है कि यदि कम्पनी अपने कर्मचारियों को पूरी सैलेरी नही दे पाती है तो उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नही होनी चाहिए। कर्नाटक में स्थित फिकस पैक्स प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की ओर से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह आदेश जारी किये है।
कंपनी ने अपनी याचिका में कहा कि केंद्र सरकार का यह फैसला ‘समान कार्य, समान वेतन ’ और ‘काम नहीं, पेमेंट नहीं’ के सिद्धांत का भी उल्लंघन है। लॉकडाउन की अवधि में भी इस सिद्धांत से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। इस याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस एल. नागेश्वर राव ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, आखिर सरकार कंपनियों से कब तक सैलरी के भुगतान की उम्मीद रखती है। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इस बात का जवाब देने के लिए उन्हें कुछ दिनों का वक्त चाहिए। बेंच ने कहा कि छोटे उद्योग लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। उनका कहना है कि कमाई के बिना वे 15 दिनों तक ही काम करते रह सकते हैं, लेकिन इसके बाद यदि उनकी
कमाई नहीं होगी तो वे वर्कर्स को सैलरी नहीं दे पाएंगी। जस्टिस नागेश्वर राव ने कहा कि यदि ऐसी स्थिति में कंपनियां अपने कर्मचारियों को सैलरी नहीं दे पाती हैं तो फिर उनके खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि यदि वास्तव में काम होता है तो फिर कंपनियां सैलरी देने के लिए बाध्य हैं, लेकिन बिना काम के ऐसी बाध्यता नहीं की जा सकती।