नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने 3 तलाक के मामले को गुरुवार को न्यायालय की संविधान पीठ को सौंप दिया जो इसकी संवैधानिक वैधता पर फैसला देगी। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि मामले की सुनवायी 11 मई से रोजमर्रा के आधार पर की जाएगी। उच्चतम न्यायालय ने इस मसले पर 2015 में संज्ञान लिया था। आज चीफ जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसे पांच जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया है। गुरुवार को अदालत में मौजूद एटॉर्नी जनरल सहित कुछ वरिष्ठ वकीलों ने गर्मियों की छुट्टी में सुनवाई पर एतराज जताया। लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि अदालत में आने वाले अहम मसले कई सालों तक चलते रहते हैं। मेरे हिसाब से इन्हें जल्द निपटाने का यही तरीका है। मैं और साथी जज छुट्टी में काम करने को तैयार हैं। आप नहीं करना चाहते तो फिर हम भी छुट्टी मनाएंगे। इस पर अदालत में मौजूद तमाम पक्षों ने 11 मई से होने वाली सुनवाई के लिए सहमति जताई। उल्लेखनीय हैं कि अदालत यह पहले ही साफ कर चुका है कि उसकी सुनवाई मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर है। कोर्ट यूनिफॉर्म सिविल कोड के मसले पर विचार नहीं करेगी। 2015 में मामले पर संज्ञान लेते वक्त कहा था, “हमें ये देखना होगा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में मौजूद तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला जैसे प्रावधान संविधान की कसौटी पर खरे उतरते हैं या नहीं? संविधान हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देता है। कहीं इस तरह की व्यवस्था मुस्लिम महिलाओं को इस हक से वंचित तो नहीं करती? अदालत में मामला शुरू होने के बाद अब तक शायरा बानो, नूरजहां नियाज, आफरीन रहमान, फरहा फैज और इशरत जहाँ नाम की महिलाएं 3 तलाक की व्यवस्था खत्म करने के लिए याचिका दाखिल कर चुकी हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा ए हिंद जैसे संगठनों ने अर्जी दायर कर कोर्ट में चल रही कार्रवाई बंद करने की मांग की है। इन संगठनों की दलील है पर्सनल लॉ एक धार्मिक मसला है। अदालत को इसमें दखल नहीं देना चाहिए।