नई दिल्ली। दवा कारोबार को पारदर्शी बनाने और नकली दवाओं की पहचान को आसान करने के लिए अब केंद्र सरकार ने एक व्यापक ऑनलाइन ट्रैकिंग व्यवस्था की तैयारी की है। स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रस्ताव के मुताबिक एक स्वायत्त संगठन तैयार कर दवा के फैक्ट्री में बनने से लेकर मरीज तक पहुंचने तक की पूरी सूचना ई-प्लेटफार्म पर उपलब्ध की जाएगी। इस व्यवस्था में हर पर्ची पर डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन नंबर भी होगा। इससे बिना जरूरत लिखी जा रही दवाओं पर भी अंकुश लग सकेगा। स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवा बिक्री की मौजूदा स्थिति को लेकर मिल रही शिकायतों को देखते हुए लंबे विमर्श के बाद इस ई-प्लेटफार्म के गठन की तैयारी की है। इसके गठन के बाद निर्माता से लेकर खुदरा विक्रेता तक सभी को इस पर रजिस्टर करना अनिवार्य होगा। दवा निर्माता को अपने स्टॉकिस्ट या थोक विक्रेता को बेची गई दवा की मात्रा, उसका बैच नंबर और एक्सपायरी तारीख जैसे सारे ब्योरे इसे देने होंगे। इसी तरह स्टॉकिस्ट, डिस्ट्रीब्यूटर और खुदरा विक्रेता को भी इस पर अपनी बिक्री के सारे ब्योरे देने होंगे। ये आंकड़े कारोबारी अपने कंप्यूटर या मोबाइल के जरिए वेबसाइट पर डाल सकेंगे। ग्रामीण और दूर-दराज के इलाकों के खुदरा विक्रेताओं को हर पखवाड़े अपने आंकड़े अपलोड करने की छूट होगी। निर्यात के लिए बनाई जा रही दवाओं के लिए ट्रैक और ट्रेस व्यवस्था पहले ही सफलतापूर्वक लागू की जा चुकी है। अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने घरेलू बिक्री के लिए तैयार हो रही दवाओं के लिए भी पुख्ता व्यवस्था की तैयारी की है। इस व्यवस्था के लिए मंत्रालय ने यह मसौदा केंद्रीय औषधि मानक और नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) में चली विमर्श की लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार किया है। दवा की बिक्री के नए नियमों के इस मसौदे पर अब 15 अप्रैल तक सभी संबंधित पक्षों और आम लोगों की राय मांगी गई है। इसके बाद इन नियमों को अंतिम रूप दिया जाएगा। इसमें यह भी कहा गया है कि खुदरा कारोबारी की ओर से दवा की बिक्री के ब्योरे के साथ दवा लिखने वाले डॉक्टर के रजिस्ट्रेशन संख्या भी लिखनी होगी। अगर यह नियम मंजूर हो गया तो ना सिर्फ फर्जी डॉक्टरों पर अंकुश लग सकेगा, बल्कि उनकी ओर से लिखी जा रही अनावश्यक दवाओं पर भी नजर होगी। इसके मुताबिक मरीज के नाम और पहचान के अलावा बाकी ब्योरे भारत के दवा निगरानी कार्यक्रम (फामाकोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया) को उपलब्ध करवाए जाएंगे। यह नियमित समीक्षा कर यह देखेगा कि कोई दवा अनावश्यक रूप से ज्यादा तो नहीं लिखी जा रही। प्रस्ताव के मुताबिक यह स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन होगा। यह अपना खर्च चलाने के लिए दवा विक्रेता से ट्रांजेक्शन शुल्क वसूल सकेगा। यह शुल्क अधिकतम एक फीसदी तक होगा। मगर यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि एक पर्ची पर यह रकम दो सौ रुपये से ज्यादा नहीं हो।