यहॉ डाकघर में जान पर मंडरा रहा खतरा, जिम्मेदारो ने मूूंदी आंखे

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चाकसू। दशको पहले बना चाकसू डाकघर परिसर आज अपनी बदहाली पर आंसू तो बहा ही रहा है साथ ही यहॉ काम करने वाले अधिकारियो व कर्मचारियो के साथ ही डाकघर में आने वाले हर उपभोक्ता की जान पर भी भारी पड रहा है। दशको पहले बने परिसर की दीवारो में बडी बडी दरारे साफ तौर पर देखी जा सकती है वही परिसर की छत से प्लास्टर उखड चुका है। बारिश के दौरान यहॉ हादसा होने का खतरा और भी ज्यादा बढ जाता है। डाकघर में काम करने वाले कर्मचारियो का कहना है कि बारिश के मौसम में सिलन के चलते छत का प्लास्टर गिरता रहता है जिसके चलते कर्मचारियो व आने वाले उपभोक्ताओ के चोटिल होने का अंदेशा बना रहता है। बारिश के दौरान छत से पानी लगातार टपकता रहता है ऐसे में उपकरण खराब होने के साथ ही दस्तावेज भीगने का खतरा बना रहा है। यहॉ तक की डाकघर में प्रवेश द्वार पर जो छज्जा बना हुआ है वह भी पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। छज्जे से प्लास्टर पूरी तरह से उतर चुका है और केवल लोहे का जाल ही नजर आता है। बाहर से रंग रोगन से चकाचक दिखने वाला डाकघर परिसर अन्दर से पूरी तरह जर्जर हो चुका है जिसके चलते कभी भी बडी अनहोनी हो सकती है और जानमाल का नुकसान हो सकता है। जानकारी अनुसार डाकघर की जर्जर स्थिति से कई बार उच्च अधिकारियो को अवगत करवा दिया गया है लेकिन थोडी बहुत रिपेयरिंग कर कार्य की इति श्री कर ली जाती है और खतरा ज्यो का त्यो बरकरार रहता है। डाकघर में बना शौचालय भी पूरी तरह से जर्जर हो चुका है जो कभी भी धराशायी हो सकता है, हालाकि इसकी जर्जर अवस्था को देखते हुए नया शौचालय परिसर में बना दिया गया है लेकिन जर्जर हालात में खडा शौचालय भी किसी की जान पर भारी पड सकता हैै। इस मामले में डाकघर के पोस्टमास्टर दीपक मिश्रा का कहना है कि भवन जर्जर हालात में है लेकिन अब काम तो करना ही पडेगा। बारिश के मौसम में छत टपकती है और छत का प्लास्टर गिर जाता है जिससे मशीने डाकघर में मौजूद उपकरणो के क्षतिग्रस्त होने व कर्मचारियो के चोटिल होने का अंदेशा बना रहता है। कई बार उच्च अधिकारियो को मामले से अवगत करवा दिया है लेकिन अभी तक भवन निर्माण को लेकर उनकी ओर से कोई जवाब नही मिला है।

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